दिल्ली
का वायु संकट: कारण, प्रभाव और समाधान
राष्ट्रीय राजधानी
और उसके आसपास के क्षेत्रों (NCR) में वायु प्रदूषण एक वार्षिक और गंभीर स्वास्थ्य संकट बन गया है। दिसंबर 2025 में, दिल्ली एक बार फिर घने स्मॉग (कोहरे और धुएं का मिश्रण) की चपेट में है, जिससे वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया है, कई इलाकों में तो यह 400 के पार और 800 तक भी दर्ज किया गया है। यह स्थिति न केवल शहर की छवि खराब कर रही है, बल्कि निवासियों, विशेषकर बच्चों, बुजुर्गों और हृदय/सांस के रोगों से ग्रस्त लोगों के स्वास्थ्य के लिए जानलेवा जोखिम पैदा कर रही है।
प्रदूषण की वर्तमान स्थिति
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में PM2.5 और PM10 जैसे महीन कणों का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुरक्षित मानकों से कई गुना अधिक है। गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, और गुरुग्राम जैसे NCR क्षेत्रों में भी हवा की गुणवत्ता ‘बहुत खराब’ से ‘गंभीर’ श्रेणी में बनी हुई है। कम हवा की गति और तापमान में गिरावट (जिसे ‘तापमान व्युत्क्रम’ या temperature inversion कहा जाता है) के कारण प्रदूषक तत्व सतह के पास जमा हो जाते हैं, जिससे स्मॉग की मोटी चादर बन जाती है।
संकट के प्रमुख कारण
दिल्ली के प्रदूषण के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें स्थानीय और क्षेत्रीय दोनों शामिल हैं:
- वाहन उत्सर्जन: वाहनों, विशेष रूप से पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों से निकलने वाला धुआं, प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
- पराली जलाना: पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में फसल अवशेष (पराली) जलाना सर्दियों की शुरुआत में प्रदूषण के स्तर में अचानक वृद्धि का एक मौसमी कारण है।
- निर्माण गतिविधियाँ: दिल्ली-एनसीआर में चल रहे बड़े निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल भी एक महत्वपूर्ण कारक है।
- औद्योगिक उत्सर्जन: उद्योगों से निकलने वाला धुआं भी हवा की गुणवत्ता को खराब करता है।
- अन्य कारक: दिवाली और गुरु पर्व के दौरान पटाखों का फटना, घरेलू ऊर्जा की बढ़ती मांग और बायोमास जलाना भी इसमें योगदान देता है।
स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव
इस जहरीली हवा के कारण 80% से अधिक निवासियों ने खांसी, गले में जलन, गंभीर थकान और सांस लेने में कठिनाई जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना किया है। प्रदूषक कण (PM2.5) इतने महीन होते हैं कि वे फेफड़ों से होते हुए रक्त प्रवाह में मिल सकते हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, हृदय रोग, स्ट्रोक और यहां तक कि फेफड़ों के कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों ने लोगों को सलाह दी है कि वे अनावश्यक रूप से बाहर निकलने से बचें और N95 मास्क का प्रयोग करें।
सरकारी प्रयास और GRAP का कार्यान्वयन
समस्या से निपटने के लिए, केंद्र और राज्य सरकारें ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत कई उपाय लागू करती हैं। वर्तमान संकट के मद्देनजर, GRAP का स्टेज-III लागू किया गया है। इसके तहत, गैर-आवश्यक निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध, BS-III पेट्रोल और BS-IV डीजल वाहनों के परिचालन पर रोक (कुछ क्षेत्रों में), और कार्यालयों में कर्मचारियों की संख्या कम करने या घर से काम करने की सलाह जैसे सख्त कदम शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, यातायात को सुचारू करने और सार्वजनिक परिवहन (CNG/इलेक्ट्रिक बसें और मेट्रो) को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया जा रहा है।
समाधान की दिशा में आगे
हालांकि सरकार द्वारा किए गए प्रयासों (जैसे औद्योगिक इकाइयों को दूर ले जाना, सीएनजी वाहनों को बढ़ावा देना) ने कुछ हद तक मदद की है, लेकिन समस्या की भयावहता बहुत अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल आपातकालीन उपायों के बजाय, एक ठोस और दीर्घकालिक कार्य योजना की आवश्यकता है, जिसमें वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करने, पराली जलाने की समस्या का स्थायी समाधान खोजने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है।
इस गंभीर संकट के बारे में अधिक जानकारी आप केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की वेबसाइट पर देख सकते हैं। thehind24.com


