देश-दुनिया

प्रेसिडेंशियल सुईट: राष्ट्रपति कोविंद की रेलयात्रा के बाद बढ़ी पूछ, जानिए कितना है किराया

दरअसल, राष्ट्रपति कोविंद ने जिस ट्रेन के डिब्बों में सफर किया है वह देश ही नहीं दुनिया की सबसे महंगी ट्रेनों में से एक है। ये ट्रेन एक चलता-फिरता फाइव-स्टार होटल है। इसके प्रेसिडेंशियल सुईट में सफर के लिए एक व्यक्ति का किराया 19 लाख रुपए है। हालांकि, राष्ट्रपति की यात्रा प्रेसिडेंशियल सैलून में न होकर महाराजा एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में हुई है। 

महाराजा एक्सप्रेस रेल मंत्रालय की पीएसयू आईआरसीटीसी की लग्जरी टूरिस्ट ट्रेन है। यह ट्रेन आमतौर पर अक्तूबर से मार्च तक चलती है। इसलिए इस समय यार्ड में ही खड़ी है। इसके कुछ डिब्बों को राष्ट्रपति के लिए तैयार की गई स्पेशल ट्रेन में जोड़ा गया था।

प्रेसिडेंशियल सुईट का किराया नौ लाख से शुरू
महाराजा एक्सप्रेस में कुल 14 अतिथि गृह हैं। जिनमें कुल 43 केबिन हैं। जिनमें 20 डीलक्स केबिन, 18 जूनियर सुईट, चार सुईट और एक प्रेसिडेंशियल सुईट शामिल है। इनमें सभी श्रेणियों के किराये और सुविधा में बहुत अंतर होता है। डीलक्स क्लास में 40, जूनियर सुईट में 36, सुईट में आठ और प्रेसिडेंशियल सुईट में चार पर्यटक सफर कर सकते हैं। ट्रेन में खाना खाने के लिए स्पेशल बोगी रंगमहल और मयूर महल होती है, इसमें चांदी के बर्तन में खाना खिलाया जाता है।

इस लग्जरी ट्रेन का सबसे छोटा टूर ट्रेजर्स ऑफ इंडिया है। चार दिन और तीन रात का ये टूर दिल्ली, आगरा, रणथंभौर, जयपुर और दिल्ली के बीच होता है। इस टूर में कोई कपल डीलक्स केबिन की बुकिंग करता है तो उसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से दो लाख 90 हजार चुकाने होते हैं। वहीं अकेले व्यक्ति को डीलक्स केबिन के लिए पांच लाख रुपए देने होते हैं। अगर कोई कपल जूनियर सुईट की बुकिंग करता है तो उसे प्रति व्यक्ति तीन लाख 70 हजार रुपए देने होंगे। जबकि अकेले व्यक्ति का किराया सात लाख रुपए है।

जबकि सुईट रुम के लिए कपल को प्रति व्यक्ति पांच लाख 70 हजार रुपये देने होंगे। वहीं, अकेले व्यक्ति का किराया 11 लाख रुपये है। प्रेसिडेंशियल सुईट में यात्रा करने वाले कपल को प्रति व्यक्ति नौ लाख 70 हजार रुपए देने होंगे। जबकि, अकेले व्यक्ति का किराया 19 लाख रुपए है।

राजशाही ठाठ-बाट का अहसास कराती है ट्रेन 
इस विशेष ट्रेन के कोच किसी फाइव स्टार होटल के कमरे से कम नहीं हैं। इसमें बैठने वाले को राजशाही ठाठ-बाट जैसा अहसास होता है। इसमें जीपीएस और जीपीआरएस, सैटेलाइट एंटिना, टेलीफोन एक्सचेंज, इंटरनेट के लिए वाई-फाई की सुविधा, मॉड्यूलर किचन, एक कोच से दूसरे कोच में निर्देश देने के लिए पब्लिक एड्रेस सिस्टम होता है। इन कोच में ऑफिस और बेडरूम के साथ डाइनिंग रूम, विजिटर रूम और एक लाउंज भी है।

राष्ट्रपति के लिए तैयार की गई थी विशेष ट्रेन
रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार, पहले राष्ट्रपति की यात्रा के लिए रेलवे के पास अलग से प्रेसिडेंशियल सैलून हुआ करता था लेकिन अब वो नहीं है। अब अगर किसी राष्ट्रपति को ट्रेन से यात्रा करनी होती है तो इसके लिए एक विशेष ट्रेन तैयार की जाती है। जो तैयार होने के बाद राष्ट्रपति भवन के अधिकारियों को दिखाया जाता है। इसमें राष्ट्रपति भवन से मिले सभी जरुरी प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है।

रेलवे के पास 336 सैलून मौजूद हैं। इनमें से 62 एसी सैलून है और बाकि पुराने हैं। इन 62 में से जो सबसे अच्छा सैलून होता है वह यात्रा के लिए उपयोग किया जा सकता है। वहीं हमें अगर सैलून का उपयोग नहीं करना है तो रेलवे के पास पैलेस ऑन व्हील्स, महाराजा एक्सप्रेस, डेक्कन ऑडिसी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों के लग्जरी सैलून भी हैं। वो भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इन कोच के रखरखाव और देखरेख में सामान्य कोच से काफी ज्यादा खर्च आता है।

राष्ट्रपति के निर्देश पर ही बंद हुआ था सैलून
रेलवे ने बताया कि आजादी के बाद से उपयोग में लाये जा रहे राष्ट्रपति सैलून की सेवाओं को खुद राष्ट्रपति भवन के निर्देश पर बंद कर दिया गया था। इससे सैलून के सालाना नवीनीकरण और रख-रखाव पर आने वाले करोड़ों रुपए के खर्च की बचत हुई है। भारतीय रेलवे एक दिन में करीब 13 हजार ट्रेनें चलाती है, जिनमें रोजाना ढाई करोड़ से ज्यादा यात्री सफर करते हैं। इसलिए भारतीय रेलवे ने जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास इस सैलून को करोड़ों की लागत से दोबारा तैयार करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया था। हर साल इस वीवीआईपी सैलून के रख-रखाव पर रेलवे मोटी रकम खर्च करता था।


राष्ट्रपति कोविंद से पहले कलाम कर चुके हैं यात्रा
भारतीय रेल के इतिहास में 15 साल किसी राष्ट्रपति ने ट्रेन की यात्रा नहीं की। इससे पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिसंबर 2006 में दिल्ली से देहरादून की यात्रा ट्रेन से की थी। उस समय उन्होंने इंडियन मिलिट्री अकादमी में सेना के अफसरों के पासिंग आउट परेड में भाग लेने के लिए ट्रेन से सवारी की थी। इससे पहले 2003 में भी डॉ. कलाम ने ही बिहार के हरनौत से पटना आने के लिए इस सैलून का इस्तेमाल किया था। तब वे हरनौत में रेल मरम्मत कारखाने का शिलान्यास करने गए थे। तब 26 साल बाद देश के किसी राष्ट्रपति ने अपनी इस सैलून का इस्तेमाल किया था।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद देश के पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने वर्ष 1950 में दिल्ली से कुरुक्षेत्र का सफर प्रेसिडेंशियल सैलून से किया था। साथ ही, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और डॉ. नीलम संजीवा रेड्डी भी इस सैलून से यात्राएं कर चुके हैं। 1960 से 1970 के बीच प्रेसीडेंशियल सैलून का प्रयोग नियमित तौर पर किया गया। 1977 में डॉ. नीलम संजीवा रेड्डी ने इस सैलून से यात्रा की। उसके करीब 26 साल बाद 30 मई 2003 को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इस सैलून से बिहार की यात्रा की थी। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने भी इस ट्रेन से यात्रा करने की इच्छा जताई थी लेकिन कार्यक्रम तय नहीं हो सका था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस ट्रेन का इस्तेमाल नहीं किया। 1956 से लेकर अब तक राष्ट्रपति के सैलून का 87 बार इस्तेमाल हुआ है।

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